क्या है Hement Soren का जायका परियोजना जो बना संजोती के लिए सहारा
क्या है Hement Soren का जायका परियोजना जो बना संजोती के लिए सहारा पढ़ते है एक कहानी के रूप में जो महिला के आर्थिक विकास में सहायक बना
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लोहरदगा
संजोती उराँव निर्धन परिवार से सम्बन्ध रखती है। वे कुडू प्रखंड के बड़कीचांपी की रहने वाली हैं। वर्ष 2009 में महिला मंडल से जुड़ी और समुह के गतिविधियों के बारे में जाना एवं सीखा। वर्ष 2010 में पति की मृत्यु के कारण इनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो गयी। इस परिस्थिति से उबरने के लिए संजोती महुवा से शराब बनाने लगी ताकि उनका रोजी रोटी चल सके और परिवार का भरण पोषण भी हो सके।
सूक्ष्म टपक सिंचाई योजना का लिया लाभ
घर के पास खेत होने से वह उसमे पारंपरिक तरीके से खेती करती थी जिसमे वह साल में बड़ी मुश्किल से 1 या 2 फसल ही ले पाती थी, इसी बीच उनके गाव में महिला मंडल की बैठक में सूक्ष्म टपक सिचाई विधि से खेती–बारी के तरीके के बारे में पता चला जिससे प्रेरित होकर उनमे इस नये तकनीक से खेती-बारी करने की उम्मीद जगी और उन्होंने अपना जायका किसान के रूप में रजिस्ट्रेशन भी करवाया और उन्नत तरीके से सूक्ष्म टपक सिचाई से खेती करने का गुण भी सिखा जिसका उन्हें सीधा लाभ मिला।
सर्वप्रथम उन्होंने जायद मौसम – 2018 में सूक्ष्म टपक सिचाई विधि से करैला की खेती किया जिसमे उन्हें कुल 1453 किग्रा करैला बिक्री करके 15,141 रुपये की शुद्ध आमदनी की जिससे उनमे सूक्ष्म टपक सिचाई विधि के खेती करने के प्रति आत्मविश्वाश जगा। किंतु उसी दौरान रबी मौसम में धनिया की खेती की जिसमे वह मात्र कुल 4,710 रुपये की कमाई ही कर सकी I
इसी क्रम में उन्होंने जायद मौसम 2019 में सूक्ष्म टपक सिंचाई विधि से तरबूज की खेती करने को सोची। संजोती को तरबूज की खेती से कुल शुद्ध कमाई 15661 रुपये की हुई।
संजोती कहती हैं कि पति की मृत्यु के बाद खेती बाड़ी करना बड़ा मुश्किल होता था और खेती-बाड़ी के लिए मजदूर ढूढ़ना पड़ता था। कभी-कभी तो मजदूर भी नहीं मिलते थे और कभी कभी मनमाना तरीके से मजदूरी तय करते थे जिससे असहाय होकर वो खेती-बाड़ी भी नहीं कर पाती थी। आज जायका परियोजना की मदद से संजोती अकेले स्वयं सब्जी खेती उगा लेती हैं। साथ में बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलवा रही है और खेती के अलावा वो स्वयं से सब्जी बिक्री भी कर लेती है , अब संजोती ने महुआ शराब भी बनाना छोड़ दिया है I
संजोती के जीवन में सामजिक और आर्थिक सुधार आया है और उनका गांव में मान सम्मान भी बढ़ा है। संजोती उराँव अब सूक्ष्म टपक विधि से खेती के तरीके को लेकर काफी खुश है और इसका लाभ भी उठा रही है।
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