कुछ तो हम ही हैं अजीब और कुछ हमारी आदतें!!
कुछ तो हम ही हैं अजीब और कुछ हमारी आदतें!!
सच कहूं तो इस धरती पर अधिकतम लोग अपने बहुत सारी बेसिर-पैर की आदतों की वजह से ,सनकों की वजह से और भी न जाने कितनी ही बातों की वजह से, एक तरह से सामान्य से अलग हुआ करते हैं और सही मायनों में कहूं ,तो वह अलग होना एक किस्म की हल्की सी विकृति ही होती है ! लेकिन ना तो हमारा अपना कोई हमें इस बात के लिए इंगित करता है और ना ही स्वयं हम इस बात को कभी समझ पाने में सक्षम होते हैं !!
हमारी आदतों के अलग-अलग कारण हो सकते हैं ,हमारी तमाम अलग-अलग तरह की बातों के अलग-अलग बहुतेरे कारण हो सकते हैं ,लेकिन कारण जो भी हो ,असामान्य होना एक अलग किस्म की बात होती है, जिसके लिए कभी तो हम अछूत भी बना दिए जाते हैं, तो कभी हम सिर पर भी चढ़ा लिए जाते हैं !! लेकिन इन दोनों ही स्थितियों में हम अपने साथ या अपने साथ रहने वाले लोगों के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाते ।
लेकिन मुश्किल यह भी है कि इसका भी हमको पता नहीं चलता और हमारे सामने वाले को भी इसका पता नहीं चलता क्योंकि वह हमें आदतन झेलते जाते हैं जिसे हम यूज़्ड टू बी भी कह सकते हैं और हम सब का स्वभाव हमारे जानने वालों के दिलों दिमाग में फिक्स हुआ रहता है ,इसलिए सब ऐसे लोगों की असामान्यताओं को या तो समझ नहीं पाते या अनजान बन जाते हैं, क्योंकि इस बाबत कुछ भी बात करने से कोई फायदा होता हुआ हमें नहीं दिख पड़ता !!
तो कुल मिलाकर हमारा जीवन हमारी बहूतेरी असामान्य आदतों के साथ फिक्स हुआ रहता है और यदि उसको कोई टटोलता भी है तो उसके साथ हम बहुधा बड़ा बुरा व्यवहार कर देते हैं और इस तरह से इन चीजों को टटोला जाना भी खत्म हो जाता है !!
लेकिन जो भी हो ,मनुष्य मुख्यतः सामाजिक प्राणी है और क्योंकि यह बात हर एक इंसान जानता है, तो उसे अपने साथ रहने वाले हर एक इंसान को उसके बुरे वक्त में सपोर्ट करना आना ही चाहिए और यह सपोर्ट अपनी तमाम सकारात्मकताओं के साथ होना चाहिए ,तभी उस सपोर्ट के कोई मायने हैं वरना कुछ नहीं !!
दोस्तों !! जिंदगी में बहुत तो बार हम ऐसी स्थितियों में जा गिरते हैं , जहां से हमें कोई ना उठाए ,ना निकाले तो हम अपने ही अवसाद में गिरकर एक तरह से मर ही जाते हैं ,ऐसे में ही हमें अपनों की आवश्यकता पड़ती है और अगर हम सचमुच अपने हैं ,तो हमें ऐसे तंग वक्त में अपने दोस्त को ,अपने रिश्तेदार को या अपने किसी को भी अपने हाथ बढ़ाकर न केवल थाम लेना चाहिए, बल्कि उसे बाहर निकाल कर उसके साथ एक क्वालिटी भरा वक्त भी देना चाहिए कि वह अपने सदमे से उबर सके और अपनी जिंदगी को फिर से सँवार सके । हकीकत में एक दूसरे को संवारने का कर्तव्य हमारा खुद का ही है ,जो अगर हम करते हैं ,तो केवल तभो हम सही मायनों में इंसान कहलाने के हकदार होते हैं !!
आपका राजीव
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