जीवन के सच......!!

अपने जीवन में बहुतों बार हम अपने जीवन-साथी से इस हद तक झगड़ जाते हैं कि उस झगड़े के कारण हमारे संबंध बहुत तल्ख़ और तनावपूर्ण हो जाते हैं

Sep 13, 2023 - 03:16
Sep 13, 2023 - 03:26
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जीवन के सच......!!
जीवन के सच......!!

प्यार की वास्तविक व व्यवहारिक किन्तु कटु सच्चाईयां 


              अपने जीवन में बहुतों बार हम अपने जीवन-साथी से इस हद तक झगड़ जाते हैं कि उस झगड़े के कारण हमारे संबंध बहुत तल्ख़ और तनावपूर्ण हो जाते हैं । हालांकि अपने जीवन के 90% हिस्सों में हम एक-दूसरे से प्यार ही कर रहे होते हैं । लेकिन यह जो 10% का हिस्सा है । यानी कि गुस्से का हिस्सा । तो जब उस गुस्से के दौर से हम गुजर रहे होते हैं ,तो हमें वह गुस्सा ही वास्तविक जीवन लगने लगता है और यहां तक कि अपने उस अंधे गुस्से के दौरान उस गुस्से का प्रक्षेपण हम अपने पूरे जीवन पर कर देते हैं और ऐसा करते हुए हम अपने जीवन-साथी के साथ ऐसी ऐसी बातें कर डालते हैं , जो सामान्य तौर पर हमने सपने में भी सोची हुई नहीं होती । लेकिन यहाँ मैं स्पष्ट तौर पर यह कहना चाहता हूँ कि हमारा यह क्षणिक गुस्सा हमारा स्थाई व्यवहार नहीं होता ।

            भले ही हम इस क्षणिक गुस्से को तूल देकर कई दिनों तक क्यों न बढ़ा लें, लेकिन यह भी हमारी व्यवहारिक मूर्खता होती है, क्योंकि उस समय हम बस यही सोच रहे होते हैं कि पहल ये करे या वो करे और लेकिन इस पूरे दौर में सबसे खराब बात यह होती है कि पहल ये करे या वो करे ,इस इंतजार में दोनों में से कोई भी पक्ष अपनी ग़लती भी मानने को राजी नहीं होता और उससे भी बड़ी मूर्खता तो यह होती है कि अपनी ग़लती पर अक्सर एकदम थेथर बन जाता है और वह उस ग़लती पर बात तक करने को राजी नहीं होता और सच तो यह है कि किसी एक पक्ष की गलती के कारण ही बात बढ़ती है । इस बेहुदी लड़ाई के दौरान अक्सर ऐसा भी होता है कि एक पक्ष अपनी गलती ना मानकर, उस गलती के न माने जाने के कारण ही उग्र हुए हुए सामने वाले पक्ष को उल्टा उसकी उस उग्रता के लिए ताना देने लगता है या उसे जलील करने लगता है या उसके पढ़े-लिखे होने पर व्यंग्य कसता है । तब यह झगड़ा उस हद तक पहुंच जाता है जिसकी कि कल्पना भी नहीं की जा सकती और बहुतों बहुत मामलों में ऐसा ही घटता है ।

              यह तो अवश्य है कि कोई ना कोई तो जरूर पहले बदतमीजी करता है या फिर अपनी किसी गलत बात पर बेहूदगी की हद तक कायम रहता है और उसके तब दूसरा पक्ष भी उसी प्रकार बदतमीजी पर उतर आता है । क्योंकि जीवन में कोई कितना ही अपना क्यों न हो  जीवन का सारा व्यवहार लेने का देना है और तब खेल ही बदल जाता है ,क्योंकि उसके बाद सारी बात एक-दूसरे के साथ उस गंदे व्यवहार पर टिक जाती है और दोनों तरफ़ से गुस्सा और और और बढ़ने लगता है । असली बात बिल्कुल खो जाती है और दोनों पक्षों की गुस्से में कही हुई तमाम बेहूदी बातें और उससे भी ज्यादा बेहूदा व्यवहार ,जो क्रमशः बढ़ते ही चले जाते हैं ,उसके कारण उस समय के जीवन में तो जैसे एक अंधड़ ही बरप जाता है ।

               कभी भी कोई यह नहीं समझ पाता कि किसी भी मामले में गुस्सा हमारा स्थाई चरित्र नहीं है,बल्कि एक दूसरे के ऊपर अधिकार करने की बलवती आकांक्षा है । हमारा एक दूसरे पर अपना अटूट अधिकार समझना प्यार में कहीं से गलत नहीं है ,लेकिन यह भी सच है कि एक-दूसरे को प्यार के साथ सम्मान भी चाहिए होता है और कोई भी पक्ष यह सोच ले कि अपने प्यार के कारण वह अपने साथी का असम्मान करके भी सही है ,तो यह बात अपने आप में गलत है । दोस्तों यह बात हरगिज़-हरगिज़ समझ लीजिए कि आदमी दरअसल एक "ईगो" है ,दूसरे से प्यार करना भी "ईगो" का ही एक स्वरूप है । उस "ईगो" का ही प्रकटीकरण है।
              
             किसी से प्यार करके आदमी यह जताता है कि मैं मेरा यह जो महत्वपूर्ण वजूद है ,वो तुम्हारे सम्मुख झुक गया है ,यानी कि मैंने तुम्हें अपने वजूद से ज्यादा महत्व दिया है या पूजा है । इसका अर्थ सीधा सीधा यह समझ लीजिये कि कोई भी पक्ष एक आदमी या एक औरत अपने प्रेमी या प्रेयसी से यह कह रहा है कि मैंने तुम्हारे ईगो को अपने ईगो से ज्यादा माना है और तुम्हारे आगे यानी तुम्हारे ईगो के आगे मैंने अपने ईगो को झुकाया है ।लेकिन इसमें भी आत्मसम्मान की ही बात है और यह आत्मसम्मान किसी के द्वारा भी हर्ट किया जाए , तो यह बात फिर गड़बड़ हो जाती हैं , क्योंकि हर एक पक्ष को अपना सम्मान चाहिए और सच तो यह है कि वह सम्मान पाने के लिए ही सम्मान देता है या प्यार पाने के लिए ही प्यार देता है । और यह एक अटूट और वास्तविक सच है कि दुनिया में सब कुछ देने का लेना है हम जिन संबंधों को बहुत पाक और पवित्र समझते हैं उसमें भी देने का लेना ही चलता है । मैं तुम्हें मारूं या पीटू तो बदले में तुम मुझे प्यार नहीं कर पाओगे । उसी प्रकार तुम मुझे हर्ट करो या मेरी जरूरतों को अनदेखा करो या मेरे सम्मान की तौहीन करो ,तो मैं भी तुम्हें प्यार नहीं कर पाऊंगा ।

          तो इस देने के लेने की सच्चाई को हमेशा गांठ बांधकर रखनी चाहिए । लेकिन हमें लगता है कि हम अपने प्यार के संबंध के कारण कुछ भी कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं या किसी को भी हर्ट कर सकते हैं ,तो दुनिया का इतिहास खोल कर देख लो या अपने ही आसपास देख लो । ऐसा कुछ भी नहीं है । ऐसा कभी नहीं होता कि एक आदमी बार-बार किसी को हर्ट करें और बदले में सामने वाला दूसरा आदमी प्यार करे ।
लैला-मज़नू, शीरी-फरिहाद , हीर-रांझा या रोमियो -जूलियट के कितने ही किस्से क्यों नहीं गाए जाएं ।लेकिन व्यवहारिक जीवन की सच्चाई यही है कि ऐसा कभी नहीं होता । ना हुआ और ना होगा । 

           तो जीवन की यह बेहद कटु सच्चाईयां हैं ,जिन पर हम अपने जीवन-साथी पर अपने प्यार के अख्तियार के कारण इग्नोर करते जाते हैं और इसी ग़लती के कारण हम बार-बार उससे उसी हद तक झगड़ा भी कर जाते हैं और यह अनंत प्यार कब अनंत वेदना बन जाता है, यह भी हम महज इसलिए नहीं जान पाते । क्योंकि हमें लगता है कि हम सही हैं और सामने वाला ही ग़लत और मुश्किल तो यह भी है कि किसी भी झगड़े में , झगड़े के बाद उसका विश्लेषण करना बहुत कठिन होता है, क्योंकि दोनों पक्षों की क्रॉस एग्जामिन करने के बावजूद सारी सच्चाई सामने नहीं आती । क्योंकि किस पक्ष ने कौन-सी बात किस टोन में और किस बॉडी-लैंग्वेज में कही थी ,यह थोड़ी उजागर होता है !! लेकिन बावजूद इसके यह बात भी सही है कि हर झगड़ा एक आत्म -विश्लेषण का अवसर भी होता है । उस झगड़े के तुरंत बाद यदि ईमानदारी पूर्वक आत्म-विश्लेषण किया जाए ,मंथन किया जाए तो हम सही मायनों में अपनी उन ग़लतियों से निजात पा सकते हैं । जिन्होंने हमारे जीवन में ज़हर घोला और घोलती ही चली आ रही हैं ।
             और सबसे अंत में सबसे अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि यह पोस्ट भी इस वक्त यदि आप शांत दिमाग से पढ़ रहे हैं, तो यह संभव भी है कि आप इस पर गहराई से आत्ममंथन कर भी पाएँ । लेकिन यही बात गुस्से और लड़ाई के दौरान की जाए ,तो कितने भी विनम्र शब्दों में हम यह बातें सामने वाले पक्ष से क्यों न करें , लेकिन वह कभी नहीं समझेगा । क्योंकि गुस्से के वक्त हमारा अपना ही जहर हम सामने वाले पर उगल रहे होते हैं । उस वक्त हमें होश होता ही कहां है ,लेकिन सच यह भी है कि मंथन के बाद जहर के पश्चात ही अमृत मिलता है और इसीलिए मैं बस यही चाहता हूँ कि हम अपनी बाबत ऐसा ही कुछ मंथन करना सीखें कि हम अपने बाकी के जीवन के लिए उस अमृत घट को पा सकें , जिससे कि सही मायनों में हमारा प्यार अमर हो जाए । या अमर न भी हो ,तो कम से कम हमारे खुद के जीवन को संपूर्ण समर्पण और प्यार के साथ चलाने लायक व्यवहारिक हो जाए ।

आज बस इतना ही

आपका राजीव थेपड़ा
With Sonal Thepra 
Rajeev Thepra Verma

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