आपदाएं और हमारे कर्तव्य ! राजीव थेपड़ा
यह लेख आज के समय की प्राकृतिक आपदाओं के बारे में है, जो अक्सर मानव-निर्मित होते हैं। लेखक मानव-निर्मित आपदाओं के प्रति अपनी विचार को को स्पष्ट करते हुए बता रहे हैं, कि इन्हें वास्तव में प्राकृतिक आपदाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि मानव के स्वयं के कर्मो का फल है।
आपदाएं और हमारे कर्तव्य !
देश के कुछ अन्य राज्यों दिनों से जो कुछ देखा है, आत्मा कांप गई है! पहाड़ धसकने, भू स्खलन और बाढ़ के कारण मीलों दूर तक पानी-ही-पानी और पानी की उस अगाध राशि में लाखों-लाख लोगों का भविष्य मिनटों में यूँ मटियामेट हो गया है कि जैसे उनका अतीत कभी हुआ ही न हो ! जैसे-जैसे तबाह हुए लोगों की भयावह आपबीती सामने आ रही है, आँखे नम और दिल दर्द से भरता जा रहा है! मरे हुओं के अलावा बिछड़ जाने वाले लोगों की दास्ताँ भी अकल्पनीय है, अपने समूचे परिवार से बिछड़ गए लोगों की आंखों का सूनापन किसे नहीं कचोट देगा ?क्या यही जीवन है, या कि हम अंधेरों के लिए ही जीते हैं ?मौत कब, कहाँ और कैसे आती है, जिंदगी कब किसे कहाँ ले जाती है, ये अगर किसी को नहीं पता तो आदमी आख़िर धरती पर क्या कर रहा है ?
किंतु ये आपदाएँ एक प्राकृतिक और आकस्मिक आपदा नहीं हैं, बल्कि आदमी-निर्मित आमंत्रित घटना है ! जिसकी सूचना थी, मगर किन्ही लोगों की बदनुमा कर्तव्य-हीनता तथा गैर जिम्मेवारियों के कारण धरती की उपजाऊ छाती को प्रकृति का यह क्रूर प्रहार झेलना पड़ा है, ये आपदाएँ तो पहले भी आयी और गई हैं, मगर इस बार तो इनके क्रोध का दंश इतना गहरा है कि जाने कितने वर्षों तक इसका शिकार बने लोग संभल नहीं पायेंगे, ना जी पायेंगे और ना मर पायेंगे !! यह क्रूरता नियति से ज्यादा स्वयं मनुष्य की है, यह आज भी देखा जा सकता है !! किनकी मदांध गलतियों से यह हादसा हुआ ? और अब बेशक बहुत सारे लोग अपना-अपना घर छोड़ कर सहायता कर रहे हैं, दूर-दूर से सहायता भेज रहे हैं !
मगर इन सबके साथ ही एक दूसरा दृश्य भी उपस्थित है, इन स्थितियों के बीच भी बहुत सारे लोग ऐसे अमानव लोग भी हैं जो यमदूतों का काम कर रहे हैं, पीडितों को लूट रहे हैं, अन्य दुष्कर्म कर रहे ये लोग हैवान हैं या शैतान, सो पता नहीं !! नाव वाले और जरुरत की अन्य चीजें इस वक्त उपलब्ध कराने वाले लोग इतना दाम मांग रहे हैं, जैसे इसी आपदा में वो सारी कमाई कर लेंगे !!लेकिन इन सबके यानी सारे शैतानों के भी बाप हैं वो लोग, जो पीडितों के लिए आने वाली तमाम तरह की सहायताओं का मोटा हिस्सा रास्ते में ही हजम कर जा रहे, सपने में भी यह विश्वास नहीं होता कि जिन्हें देखकर एक आम इंसान का दिल पूरी तरह पसीज जाए और वह स्वमेव ही सहायता को तत्पर हो जाए, वहीं कुछ लोग इतने बेगैरत-बेशर्म कैसे हो सकते हैं कि अपना मानव-धर्म ही भूल जाएँ ? कैसे एक आदमी जान बचाने को तत्पर बहते हुए आदमी को बचाने की बजाय लूट ले सकता है या एक पीड़ा की मारी दुखियारी स्त्री का रेप कर सकता है या एक दूकानदार किसी आपदा पीड़ित एक भूखे-नंगे आदमी से किसी भी चीज़ के ज्यादा दाम ले सकता है ?? इसे पाशविक कहना भी तो पशुता का अपमान ही होगा !!
आदमी अगर किसी उपरवाले को मानता है, तो क्या उसकी छड़ी से जरा भी नहीं डरता ? आपदा-पीडितों की सहायता के लिए सैकडों करोड़ रूपये आ चुके हैं,और उससे कहीं ज्यादा आने वाले हैं, उसपे भी जिनकी गन्दी दृष्टि लगी हुई है, क्या उन्हें तनिक भी इस बात का अहसास नहीं कि इस पैसे डकाराने वालों के बच्चे कौन-सी अभागी मौत मरेंगे और वे ख़ुद भी अपनी बाकी जिन्दगी में इसी धरती पर रहते हुए भी नरक के किस कोने में सडेंगे ?? कर्मों का सही मूल्य और उसके उचित परिणाम ऐसे ही मौकों पर ही तो तय होते हैं! कर्म अगर पूजा हैं, तो बेशक यही वो कर्म होंगे !! इस वक्त तो सारे लोग भी यदि मसीहा बन जाएँ, तो शायद यह भी कम हो और यदि सचमुच अगर हम किसी उपरवाले के बन्दे हैं, अगर सही में हम किसी अल्लाह की नेक संतान हैं, तो आज हमारा यही समुचित व सच्चा जेहाद होगा .....
बोल साचे दरबार की जय ! बोलो अल्लाह हो अकबर ! जो बोले सो निहाल सत् श्री अकाल ! गाड इज ग्रेट !! कि ये वक्त है कुछ कर जाने का, किन्हीं गमगिनों के काम आ जाने का ...... कि ये वक्त है सचमुच के आदमी बन जाने का !! आइये आज हम सचमुच ही आदमी बन जाएँ !! आइए आज हम अपनी मनुष्यता को गर्वित कर जाएं!!
राजीव थेपड़ा
राँची, झारखंड
70047-82990
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