इसकी शुरुआत स्वयं से ही करनी होगी It has to start with yourself
इसकी शुरुआत स्वयं से ही करनी होगी
भ्रष्टाचार के विरोध में कहीं जा रही कोई भी बात किसी को भी बहुत ही अच्छी लगती है और विशेषतया जब किसी देश का प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर किसी विशेष स्थान पर खड़े होकर भ्रष्टाचार के बारे में बातें करता है और इससे होने वाली हानियों को दृष्टिगत करते हुए देश को इससे बचाने के लिए और देश को आगे बढ़ाने के लिए तरह-तरह के संकल्पों की बातें करता है तो वास्तव में सारा देश मर्माहत हो जाता है!
संभव हो कि उस व्यक्ति के मन में वास्तव में भ्रष्टाचार के प्रति बहुत बड़ी पीड़ा हो। संभव हो कि वह अपनी जान में भ्रष्टाचार से रत्ती भर भी जुड़ा हुआ नहीं हो और उसके पास भ्रष्टाचार से कमाई हुई किसी भी तरह की संपदा भी नहीं हो । किंतु भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ सबसे बड़ा सत्य और तथ्य यही है कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री शिखर से ही शुरू होती है और हर गंगा की तरह मैदानों तक आते-आते और अपना गंतव्य पूरा करते हुए पूरी तरह से मलीन और प्रदूषित हो जाती है!
भ्रष्टाचार के विषय में एक बात बड़े विश्वास के साथ में पूरे देश को बताना चाहता हूं कि भ्रष्टाचार की शुरुआत वहां से होती है जहां से पार्टियां चुनाव लड़ती हैं। चुनाव लड़ने और पार्टियों को चलाने के लिए लिया जा रहा चंदा अपने आप में भ्रष्टाचार की शुरुआत का सबसे प्रथम उद्गम हैं। इसे जब तक हम सही तरीके से सोच नहीं पाते, तब तक भ्रष्टाचार की बाबत किसी भी तरह की बात करना बिल्कुल फिजूल होगा, कोरी लफ्फाजी ही होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि आज के दिनों में भारत में चुनाव दुनिया का सबसे महंगा उत्सव हो गया है और इस उत्सव को मनाने के लिए जब हम लाखों लोगों से चंदा इकट्ठा करते हैं। तो उन लाखों लोगों को उस चंदे के बदले उनका दाय भी लौटाना पड़ता है।
यह बिल्कुल उसी प्रकार है जैसे किसी बच्चे के जन्मदिन पर रिटर्न गिफ्ट के रूप में अन्य बच्चों को उपहार देना । तो जब भी हम किसी संस्थान, किसी दल, किसी देश को चलाने के लिए सत्ता पर काबिज होने के लिए लाखों लोगों से हजारों करोड़ों रुपए का चंदा लेते हैं, उसी वक्त यह भी तय हो जाता है कि अब हमें उन लाखों लोगों के लिए कुछ नीतियां, कुछ कार्यक्रम ऐसे तय करने हैं कि उन्हें उस चंदे के बदले एक वाजिब रिटर्न मिल सके । तो इसे यूं भी कहा जा सकता है कि लाखों लोगों द्वारा चंद पार्टियों को दिया जा रहा यह चंदा उनका अपने व्यापार के लिए एक तरह का निवेश होता है। यह निवेश अपने आप में भ्रष्टाचार की शुरुआत है। क्योंकि कोई भी निवेशकर्ता अपने द्वारा किए जा रहे हैं निवेश की अधिक से अधिक भरपाई करना चाहता है और सच पूछा जाए तो सीधे-सीधे उद्योग एवं व्यापार द्वारा वह रिटर्न कभी हासिल नहीं हो सकता, जो सरकारों को दिए जा रहे तरह-तरह के चंदे के एवज में बने कार्यक्रमों और नीतियों तथा अन्य छूटों से प्राप्त हो सकता है।
सच पूछा जाए तो देश का आम जनमानस इन सभी बातों से पूरी तरह से अनभिज्ञ होता है और जब भी कोई बड़ा नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत करता है, तो देश का यह मासूम जनमानस उसके पीछे हो लेता है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन करते हुए कुछ सालों पूर्व एक पार्टी का जन्म हुआ जिसे "आप" कहा गया और देखा जाए, तो वह भी किसी भी सूरत में किसी अन्य दल से भ्रष्टाचार में कहीं भी कम नहीं है। बल्कि पिछले दिनों ईडी द्वारा की गई उसके खिलाफ कई कारवाईयों द्वारा इस बात को बल मिलता है कि वह तो भ्रष्टाचार में अन्य दलों की बाप ही निकली !
असल में भ्रष्टाचार के द्वारा अकूत काला धन पैदा होता है और उसी से देश के की अर्थव्यवस्था के समानांतर एक अलग ही अर्थव्यवस्था चल रही होती है जिसका कि कोई वास्तविक हिसाब-किताब ही नहीं होता । हर तरह के उत्सव उसी काले धन के द्वारा मनाए जाते हैं । हर तरह के अतिरिक्त खर्च एवं बेनामी संपदाओं की खरीद इसी के द्वारा होती है। और तो और विभिन्न समय में होने वाले विभिन्न दल-बदल एवं सत्ता-पलट भी इसी काले धन की बदौलत संपन्न किए जाते हैं। यानी काला धन वह धन है, जिससे हर तरह का काला कर्म किया जाता है और नाजायज धंधों में यह धन खपाया जाता है और इसे खपाने के तरीके भी नायाब होते हैं और पुनः इस काले धन को सफेद करने के तरीके उससे भी बढ़कर नायाब !! ऐसे में इस देश में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की बन आई है।
उसी प्रकार पार्टियों द्वारा मुक्त हस्त से कार्यकर्ताओं को बांटा जाने वाला धन एवं तरह-तरह के लोगों को तरह-तरह से उपकृत करने वाला धन भी यही धन होता है, जिनमें खर्चों का पूर्ण ब्यौरा रखने की आवश्यकता नहीं होती और इसकी बुनियाद में राजनीतिक दल ही हैं, जिनको अपने दल को चलाने के लिए और चुनाव जीतने के लिए प्रति सीट करोड़ों रुपए की आवश्यकता होती है और यह करोड़ों रुपए यूं ही नहीं आते। इसके एवज में सरकारों द्वारा दिए जा रहे तमाम तरह के ठेके, तमाम तरह की खरीदारियां, तमाम तरह के परोपकार, सभी में सरकारी नुमाइंदों की सांठगांठ के साथ इतना जबरदस्त घपला होता है कि जिस का विवरण यदि कुल आंकड़ों के रूप में सामने आ जाए, तो देश की जनता की आंखें फटी रह जाएंगी!!
इसे यूं भी समझा जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था प्रति वर्ष जितने लाख करोड़ रुपयों की है, उसका कम से कम 30% धन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। हर साल यह 30% का धन कितना होता है, जरा इसे आंकड़ों में सजाकर देखा जाए, तो न केवल हम हतप्रभ हो जाएंगे, बल्कि अपना माथा पीटने लगेंगे!! यहां तक कि जिस मीडिया के द्वारा भ्रष्टाचार की बातें हम जनमानस तक पहुंचती हैं, उस मीडिया को दिया जा रहा विज्ञापन भी कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार को ही पोषित करता है और बहुत सारा मीडिया तो सिर्फ उन विज्ञापनों को बटोरने के लिए ही तमाम सरकारों की बड़ाई करता है। और इस प्रकार और इस प्रकार इस तरह के मीडिया कर्मी न केवल अपना घर चलाते हैं, बल्कि पूरी शानो-शौकत के साथ और रसूख के साथ जीते हैं!
जिस प्रकार मीडिया के एक वर्ग में गोदी मीडिया शब्द का आविष्कार हुआ है। तो सच तो यह है कि उसी प्रकार मीडिया का हर हिस्सा कहीं ना कहीं किसी न किसी गोद में ही पलता है और पोसा जाता है! भले ही मीडिया का एक वर्ग दूसरे वर्ग को गोदी मीडिया कहें और दूसरा वर्ग पहले वर्ग को अंधभक्त कहे या पहला वर्ग दूसरे वर्ग को टुकड़े-टुकड़े गैंग कहे!! तो किसी को किसी भी उपनाम से पुकारे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार के विरोधी सिर्फ और सिर्फ वही है, जिनको असल में किसी भ्रष्टाचार में उनका अपना वाजिब हिस्सा नहीं मिला!!
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अधिकतम दल अपने-अपने राज्यों में अपने उस हिस्से को पाने का प्रयास करते हुए ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करते हैं और जब वे स्वयं सत्ता पा लेते हैं, तब वे स्वयं भी वही करते दिखाई देते हैं, जो पिछली सरकारें कर रही थीं!! इसका मतलब कहीं ना कहीं यह भी हुआ कि सिर्फ चोर बदल जाते हैं, बाकी कुछ नहीं बदलता!!
तो वास्तव में यदि किसी भी सत्ता को, देश को किसी भी शीर्षस्थ को भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ भी करना हो, तो यह उसके वक्तव्य से बिल्कुल नहीं होने वाला, बल्कि इसके लिए पहले स्वयं के दल से ही शुरुआत करनी होगी और मेरी समझ से यह असंभव है!! क्योंकि चुनावी परिपाटी जब तक पैसे की मोहताज है, तब तक ऐसा होना असंभव प्राय: है और यदि सचमुच किसी में 56 इंच का सीना है, तो जैसा कि कहा जाता है कि वह है, तो सब कुछ मुमकिन है! तो फिर अवश्य ही उसे इस विषय पर अपने ही संस्थान/दल से शुरुआत करनी चाहिए, ताकि लोगों को यह प्रतीत तो हो कि वह इस विषय में कितना ईमानदार है और देश की जड़ों में मट्ठा डालने वाले इस भ्रष्टाचार को दूर करने की कितनी सामर्थ्य रखता है!!
लेकिन यह अवश्य है कि भ्रष्टाचार जब भी दूर होगा, उसकी शुरुआत स्वयं से ही होगी और यह शुरुआत देश का कोई शीर्षस्थ नेता या कोई दल भर ही क्यों करें? इसकी शुरुआत तो हम सब स्वयं भी कर सकते हैं! अपने आप को तरह-तरह के लालच और स्वार्थों से बचाते हुए हम तमाम सरकारों और प्रशासनों की जवाबदेही भी तय कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए सड़कों पर घनघोर आंदोलन करने होंगे और तब तो समूचा देश ही सड़क पर आ जाएगा। तो क्या ऐसा होना भी संभव है? क्या देश का जनमानस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पूरा का पूरा सड़क पर आकर आंदोलन करने को तैयार भी है कि उसके सामने सिर्फ अपने कैरियर को हासिल करने के सुहावने सपने भर हैं? तो ऐसे में भला तो इसी बात में लगता है कि प्रथमत: राजनीति की गंगोत्री की सफाई से ही भ्रष्टाचार के खात्मे की शुरुआत हो ।।
राजीव थेपड़ा
रांची, झारखंड
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