राजस्थान में कांग्रेस हारती है तो गहलोत की ये 5 व्यक्तिगत गलतियां होंगी जिम्मेदार
राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए वोट पड़ चुके हैं. अब सबकी निगाहें 3 दिसंबर के दिन काउंटिंग पर हैं. कहा जा रहा है कि कांग्रेस इस बार प्रदेश में रिवाज बदल सकती है. दरअसल प्रदेश में हर पांच साल पर सरकार बदलने का रिवाज रहा है.
अगर इन सब के बावजूद भी कांग्रेस को राज्य में पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो उसके कई कारण हो सकते हैं. इन कारणों में कई गलतियां पार्टी स्तर की भी हो सकती हैं. पर जिस तरह अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो सबसे बड़ी भूमिका अशोक गहलोत की होगी उसी तरह अगर पार्टी सत्ता में नहीं आती है तो इसके लिए अशोक गहलोत की कुछ व्यक्तिगत गलतियां जिम्मेदार होंगी. अशोक गहलोत ने कई गलतियां ऐसी की जो वो चाहते तो उनसे बच सकते थे. गहलोत जानते थे कि जो वो कर रहे हैं उसका उल्टा असर पार्टी पर पड़ना तय है पर अपनी गोटी सेट करने में वो भूल गए कि पार्टी से अलग किसी नेता का अस्तित्व नहीं होता है.
1- बागी उम्मीदवारों को कभी व्यक्तिगत रूप से मनाने की कोशिश नहीं की
राजस्थान की राजनीति को नजदीक से देखने वालों का मानना है कि अशोक गहलोत ने कांग्रेस के बागी प्रत्याशियों को कभी मनाने का प्रयास नहीं किया. वो चाहते तो अपने पद प्रतिष्ठा का इस्तेमाल कर उन्हें चुनाव लड़ने से मना कर सकते थे. पर अशोक गहलोत डबल गेम खेल रहे थे. कहा जा रहा है कि वो खुद चाहते हैं कि पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिले. क्योंकि उन्हें यकीन है कि पूर्ण बहुमत आने पर सरकार बनाने की चाभी उनके हाथ से निकल कर पार्टी हाईकमान के पास चली जाएगी. गहलोत जानते हैं कि पूर्ण बहुमत न मिलने की पोजिशन में पार्टी के अंदर उनकी पूछ बरकरार रहेगी और किसी तरह जोड तोड़ कर के फिर सीएम बन जाएंगे. यही कारण रहा कि गहलोत अपने समर्थक बागियों के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार करने से बचते रहे. जाहिर है कि गहलोत का दांव बहुत रिस्की है. कोई जरूरी नहीं है कि उनके गुट के जिन लोगों को टिकट नहीं मिला वो बागी बनकर चुनाव जीत ही जाएंगे.
2- पूरे साढ़े तीन साल सचिन पायलट को अपमानित करते रहे गहलोत
महाभारत युद्ध के पहले कौरवों और पांडवों के बीच समझौते की बात चल रही थी. युधिष्ठिर ने कौरवों को प्रस्ताव दिया कि वो केवल पांडवों को पांच गांव ही सौंप दें ताकि युद्ध को रोका जा सके. परंतु दुर्योधन तैयार नहीं हुआ. परिणाम युद्ध हुआ और कौरवों को सब कुछ खोना पड़ा. सचिन पायलट के साथ लड़ाई में अशोक गहलोत किसी भी कीमत पर सचिन पायलट को कुछ देने के तैयार नहीं थे. सचिन का डिप्टी सीएम पद तो गया ही संगठन में भी उन्हें कोई पद नहीं दिया गया. क्योंकि गहलोत इसके लिए तैयार नहीं थे. सचिन के लिए कई बार अपमानजनक शब्दों का भी इस्तेमाल किया. जबकि सभी जानते हैं कि सचिन पायलट ने 2018 में कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए कितनी मेहनत की थी.
करीब छह महीने पहले कहा गया कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मतभेद खत्म हो गए पर शायद वो सब दिखावा ही था. चुनाव के दौरान दोनों एक ही पोस्टर में तो नजर आए, लेकिन साथ-साथ न तो रोड शो हुए और न ही रैलियां हुईं. पायलट समर्थकों में यह स्पष्ट संदेश गया कि दोनों के बीच मनभेद अभी बरकरार हैं. गुर्जर वोटर गहलोत को कभी माफ नहीं कर पाए. उन्हें यह भी लगता है कि गहलोत के रहते पायलट कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे. गहलोत अगर थोड़ा नरमी दिखाए होते तो शायद तस्वीर ही कुछ और होती.
3- बार-बार पेपर लीक से तड़प कर रह गए युवा
राजस्थान सरकारी नौकरियों में होने वाले घोटाले की पहचान बन गया. पांच साल में करीब 17 बार पेपरलीक की खबरें आईं . राज्य में नौकरियों की सेल लगी थी जो पैसे देकर कोई भी खरीद रहा था.राज्य में पहली बार वोट डालने वाले 18 से 21 साल के युवा वोटरों की संख्या करीब 66 लाख है. यह वर्ग नौकरियों में भ्रष्टाचार और बार-बार हुए पेपरलीक से जरूर दुखी होगा. सबसे दुखद बात यह थी कि दोषियों के खिलाफ एक्शन में सरकार ने जो लापरवाही दिखाई उससे यही लगा कि सब प्रदेश सरकार की मर्जी से हो रहा है. प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इस मुद्दे को चुनावों में जमकर भुनाया भी है.स्वयं पीएम मोदी अपने भाषणों में बार-बार इस मुद्दे का जिक्र करते रहे. अगर गहलोत हारे तो युवा वोटर की नाराजगी इसकी सबसे बड़ी वजह होगी.
4- योजनाएं बहुत बनीं पर उन्हें ठीक से लागू नहीं किया गया
गहलोत अगर हारे तो इसकी एक वजह यह भी होगी कि योजनाएं तो खूब बनाए पर उनके क्रियान्वयन में बहुत लापरवाही बरती या वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं. आधे-अधूरे और अनमने ढंग से शुरू की गई योजनाएं जनता के चिढ़ का कारण बन गईं. सवा करोड़ महिलाओं को स्मार्टफोन देने की घोषणा हुई, चालीस लाख को फोन देने का दावा किया गया पर कहा जा रहा है कि वास्तव में बीस-पच्चीस लाख ही फोन बांटे जा सके. जिन लोगों को स्मार्टफोन नहीं मिला उनका वोट किस तरह कांग्रेस को जाएगा? यही हाल बेरोजगारी भत्ता स्कीम और प्रदेश सरकार की फ्लैगशिप स्कीम जिसके तहत 25 लाख रुपये गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए दिए जाते हैं उसका रहा है. सरकार खुद इन योजनाओं के लाभान्वितों का रिकॉर्ड देने में सक्षम नहीं है.
5- दो-दो साल तक खाली रहे पद
कांग्रेस की हार में मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत की लापरवाही कहें या कोई अन्य कारण जिसके चलते बोर्ड निगमों सहित तमाम पद सालों साल खाली रखने का दोष भी मढ़ा जाएगा. जो नियुक्तियां चुनाव से डेढ़-दो साल हो जानी चाहिए थीं वो ऐन चुनाव के मौके पर हो रही थीं. चुनाव से दो-तीन महीने पहले अलग- अलग समुदायों को खुश करने के लिए करीब 16 बोर्ड बनाए गए. हैरानी होगी यह जानकर कि कई बोर्डों में अध्यक्ष पदों पर नियुक्तियां आचार संहिता लागू होने से दो घंटे पहले तक की गईं. आनन फानन में हुए इन कार्यों से उनका फायदा उस तरह नहीं उठाया जा सका जितना उठाया जा सकता था. कार्यकर्ता खफा हुए सो अलग है.
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